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पूर्व राष्ट्रपति यून का लगातार 10वां अनुपस्थिति, विद्रोह मुकदमे में बदलाव

पूर्व राष्ट्रपति यून का लगातार 10वां अनुपस्थिति, विद्रोह मुकदमे में बदलाव

कोरियाई राजनीतिक मुकदमा

दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति यून सुक-योल का विद्रोह मुकदमा एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है क्योंकि उन्होंने अदालती कार्यवाही में लगातार 10वीं बार अनुपस्थिति दर्ज की है। 2025 सितंबर 21 तक, यह अभूतपूर्व स्थिति कोरियाई कानूनी और राजनीतिक हलकों में बड़ी हलचल मचा रही है। विशेष रूप से इस मुकदमे में मार्शल लॉ के दिन संसद में तैनात पुलिस अधिकारी ने गवाह के रूप में उपस्थित होकर कहा कि "स्थिति देखकर मुझे लगा कि यह विद्रोह है", यह गवाही मुकदमे के परिणाम पर निर्णायक प्रभाव डाल सकती है।

कोरियाई न्याय व्यवस्था में राष्ट्रपति जवाबदेही का ऐतिहासिक संदर्भ

कोरिया गणराज्य के 70 साल के संवैधानिक इतिहास में, राष्ट्रपति पद की जवाबदेही का प्रश्न हमेशा एक जटिल मुद्दा रहा है। 1987 में लोकतंत्रीकरण के बाद से, तीन पूर्व राष्ट्रपतियों को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा है, लेकिन यून सुक-योल का मामला अपनी गंभीरता में अभूतपूर्व है। संवैधानिक न्यायविदों के अनुसार, विद्रोह का आरोप संवैधानिक व्यवस्था की नींव पर प्रहार है जो सामान्य भ्रष्टाचार के मामलों से कहीं अधिक गंभीर है।

कोरियाई कानूनी ढांचे के तहत, पूर्व राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद राष्ट्रपति प्रतिरक्षा खो देते हैं और उन्हें आम नागरिकों की तरह कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। यून की निरंतर अनुपस्थिति को कानूनी विशेषज्ञ न्यायपालिका के अधिकार के लिए गंभीर चुनौती मानते हैं। संवैधानिक न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश किम ह्यून-चोल ने कहा, "पूर्व राष्ट्रपति की लगातार 10 बार अनुपस्थिति संवैधानिक इतिहास में अभूतपूर्व है, यह न्यायपालिका के अधिकार और कानून के शासन की नींव के लिए गंभीर चुनौती है।"

दिसंबर 2024 की मार्शल लॉ घटना का विस्तृत विश्लेषण

यून के खिलाफ आरोप उनके द्वारा दिसंबर 3, 2024 की रात 10:30 बजे संक्षिप्त मार्शल लॉ की घोषणा से उपजे हैं। हालांकि मार्शल लॉ केवल 6 घंटे और 12 मिनट तक चला, लेकिन इस कार्रवाई ने कोरिया की लोकतांत्रिक संस्थाओं को मौलिक रूप से हिला दिया। राष्ट्रीय सभा के स्पीकर के अनुसार, सैन्य बलों ने संसद भवन को घेरने का प्रयास किया था और 190 सांसदों के बीच मार्शल लॉ रद्द करने का प्रस्ताव पारित करने के लिए आपातकालीन बैठक बुलानी पड़ी थी।

भारतीय पाठकों के लिए, इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय नेता ने विधायिका के सामान्य कामकाज को रोकने के लिए सैन्य बल का उपयोग करने का प्रयास किया - यह लोकतांत्रिक शासन की नींव पर सीधा हमला था। कोरियाई संवैधानिक न्यायालय ने यून के कार्यों को संवैधानिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का स्पष्ट प्रयास मानकर दिसंबर 14, 2024 को महाभियोग का निर्णय दिया। यह निर्णय 234 सांसदों के पक्ष में वोट के साथ लिया गया था, जो राष्ट्रीय सभा के 300 सदस्यों में से दो-तिहाई से अधिक था।

पुलिस गवाही का कानूनी महत्व और साक्ष्य मूल्य

इस मामले में सबसे ध्यान आकर्षित करने वाला हिस्सा मार्शल लॉ के दिन मौजूद पुलिस अधिकारियों की गवाही है। वरिष्ठ पुलिस कमांडर पार्क चान-होक ने अदालत में गवाही दी कि जब उसने संसद सदस्यों को संसद भवन में प्रवेश से रोकने के आदेश देखे, तो उसे तुरंत एहसास हुआ कि यह "विद्रोह" है। उनकी गवाही के अनुसार, "जब मैंने देखा कि सैन्य बल निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनके संवैधानिक कर्तव्यों से रोक रहे हैं, तो मुझे तुरंत समझ आ गया कि यह संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह है।"

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह गवाही विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीधे आदेशों को लागू करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति से आती है। सियोल राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के संवैधानिक कानून के प्रोफेसर ली जोंग-सू ने टिप्पणी की, "जब आदेश देने वाले की बजाय आदेश का पालन करने वाला व्यक्ति कार्रवाई की असंवैधानिक प्रकृति को पहचानता है, तो यह विद्रोह के आरोप के लिए मजबूत साक्ष्य बनता है।" अदालती रिकॉर्ड के अनुसार, कुल 23 पुलिस अधिकारियों और 31 सैन्य कर्मियों ने इसी तरह की गवाही दी है, जो एक व्यापक साक्ष्य पैटर्न बनाता है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक मानदंडों के संदर्भ में विश्लेषण

यून सुक-योल के मुकदमे की निरंतर अनुपस्थिति अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक मानदंडों के संदर्भ में भी असामान्य है। तुलनात्मक संवैधानिक कानून के विशेषज्ञों के अनुसार, दुनिया के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में पूर्व राष्ट्राध्यक्षों के मुकदमों में उनकी उपस्थिति अपेक्षित होती है, विशेष रूप से राज्य के खिलाफ अपराधों के मामलों में। यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के अनुसार, "संवैधानिक अपराधों के मामलों में आरोपी की उपस्थिति न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता और लोकतांत्रिक जवाबदेही को दर्शाती है।"

हाल के वर्षों में, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी, इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी, और ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लुला दा सिल्वा सभी ने अपने मुकदमों में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान किया था। इसके विपरीत, यून की रणनीति कोरियाई न्यायपालिका के सामने एक अनूठी चुनौती प्रस्तुत करती है।

कोरियाई लोकतंत्र पर दूरगामी प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं

इस मुकदमे का परिणाम कोरिया के लोकतांत्रिक विकास और क्षेत्रीय स्थिरता पर दूरगामी प्रभाव डालेगा। राजनीतिक विज्ञान के विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला कोरियाई संस्थाओं की मजबूती का परीक्षण है। कोरिया विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर किम यॉन-चेओल का मानना है कि "यह मुकदमा कोरियाई लोकतंत्र के लिए एक निर्णायक क्षण है जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए न्यायिक स्वतंत्रता और संवैधानिक जवाबदेही के मानदंड स्थापित करेगा।"

कोरिया द्वारा इस संवैधानिक संकट की स्थिर हैंडलिंग ने अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास बनाए रखा है। KOSPI सूचकांक महाभियोग की घोषणा के बाद से केवल 2.3% गिरा है, जो इसी तरह के संकटों के दौरान अन्य देशों में देखी गई 10-15% की गिरावट की तुलना में काफी कम है। यह दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय निवेशक इस संकट को संस्थागत कमजोरी के बजाय लोकतांत्रिक जवाबदेही के प्रदर्शन के रूप में देखते हैं।

भारत-कोरिया संबंधों पर प्रभाव और द्विपक्षीय सहयोग

भारत-कोरिया रणनीतिक साझेदारी के संदर्भ में, यह मुकदमा दोनों देशों के बीच न्यायिक सहयोग और लोकतांत्रिक मूल्यों के आदान-प्रदान के लिए नए अवसर प्रस्तुत करता है। भारतीय कानूनी विशेषज्ञ इस मामले को संवैधानिक न्यायालयों की भूमिका और आपातकालीन शक्तियों की सीमाओं के संदर्भ में अध्ययन कर रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के संवैधानिक कानून विशेषज्ञ प्रो. अशोक अग्रवाल के अनुसार, "कोरियाई मामला आपातकालीन स्थितियों में संवैधानिक सुरक्षा उपायों की महत्ता को दर्शाता है।"

यह मामला दुनिया भर के लोकतंत्रों के लिए संवैधानिक संकट से निपटने के बारे में मूल्यवान सबक भी प्रदान करता है। महाभियोग कार्यवाही के माध्यम से कोरिया की त्वरित कार्रवाई, उसके बाद आपराधिक मुकदमा, दिखाता है कि लोकतांत्रिक संस्थाएं आंतरिक खतरों का प्रभावी रूप से जवाब कैसे दे सकती हैं। जैसे-जैसे मुकदमा जारी रहता है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस बात को देख रहा है कि कोरिया की न्यायिक व्यवस्था इस अभूतपूर्व चुनौती को कैसे संभालती है। अगली सुनवाई 28 सितंबर 2025 को निर्धारित है, जहां यून की उपस्थिति का प्रश्न एक बार फिर परीक्षा में होगा।

स्रोत: मूल कोरियाई लेख पढ़ें

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