दक्षिण कोरियाई तकनीकी शिक्षा क्रांति: VR और AR के साथ व्यावहारिक कौशल विकास की नई दिशा
दक्षिण कोरिया की शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहा है। 2025 में लागू किए गए नए तकनीकी शिक्षा कार्यक्रम में वर्चुअल रियलिटी (VR) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) तकनीक का व्यापक उपयोग शुरू हुआ है, जो छात्रों को पारंपरिक शिक्षा से कहीं अधिक व्यावहारिक और इमर्सिव अनुभव प्रदान कर रहा है।
यह पहल भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत भी 'डिजिटल इंडिया' और 'नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020' के तहत तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि भारत में अभी भी VR/AR का उपयोग शुरुआती चरण में है, दक्षिण कोरिया का मॉडल दिखाता है कि कैसे इमर्सिव तकनीक शिक्षा को रूपांतरित कर सकती है।
इमर्सिव लर्निंग का नया युग
सियोल के तकनीकी विश्वविद्यालयों में अब छात्र वर्चुअल लैब में जटिल इंजीनियरिंग प्रयोग कर सकते हैं, AR के माध्यम से 3D मॉडल्स के साथ इंटरैक्ट कर सकते हैं, और VR सिमुलेशन में वास्तविक औद्योगिक वातावरण का अनुभव पा सकते हैं। यह न केवल सीखने की गुणवत्ता बढ़ाता है बल्कि महंगे उपकरणों और खतरनाक प्रयोगों की जरूरत को भी कम करता है।
उदाहरण के लिए, मेडिकल छात्र VR में वर्चुअल सर्जरी का अभ्यास कर रहे हैं, इंजीनियरिंग छात्र AR में जटिल मशीनों को असेंबल और डिसैसेंबल कर रहे हैं, और आर्किटेक्चर के छात्र वर्चुअल स्पेस में अपनी डिजाइन को वॉकथ्रू कर रहे हैं।
भारतीय संदर्भ में देखें तो यह काफी प्रेरणादायक है। IIT बॉम्बे, IIT दिल्ली, AIIMS जैसे संस्थानों में VR/AR का सीमित उपयोग शुरू हुआ है, लेकिन व्यापक पैमाने पर इसकी जरूरत है। भारत में मेडिकल कॉलेजों की कमी, इंजीनियरिंग लैब्स में उपकरणों का अभाव जैसी समस्याओं का समाधान VR/AR तकनीक से हो सकता है।
उद्योग-शिक्षा सहयोग का नया मॉडल
दक्षिण कोरिया की सफलता का मुख्य कारण सरकार, शिक्षा संस्थान, और उद्योग के बीच घनिष्ठ सहयोग है। सैमसंग, LG, हुंडई जैसी बड़ी कंपनियां अपने वर्चुअल ट्रेनिंग प्रोग्राम विश्वविद्यालयों के साथ साझा कर रही हैं, जिससे छात्र ग्रेजुएशन से पहले ही उद्योग की वास्तविक चुनौतियों से परिचित हो जाते हैं।
इससे भारत को महत्वपूर्ण सीख मिलती है। टाटा, रिलायंस, इंफोसिस, TCS जैसी भारतीय कंपनियां अपने VR/AR प्रशिक्षण कार्यक्रम IIT, IIM, अन्य तकनीकी संस्थानों के साथ साझा कर सकती हैं। इससे 'स्किल इंडिया' मिशन को भी बड़ी मदद मिलेगी।
डिजिटल विभाजन को पाटना
दक्षिण कोरिया ने यह भी सुनिश्चित किया है कि तकनीकी शिक्षा केवल अमीर छात्रों तक सीमित न रहे। सरकार ने कम आय वाले परिवारों के छात्रों के लिए VR/AR डिवाइस की व्यवस्था की है और ग्रामीण क्षेत्रों में भी मोबाइल VR लैब शुरू किए हैं।
भारत के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि डिजिटल विभाजन यहां एक बड़ी चुनौती है। सरकार की 'वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफॉर्म' योजना के तहत VR/AR तकनीक को शामिल किया जा सकता है। जियो की सफलता दिखाती है कि भारत में भी कम लागत पर उच्च तकनीक का प्रसार संभव है।
भविष्य की चुनौतियां और अवसर
हालांकि यह तकनीकी क्रांति आशाजनक है, कुछ चुनौतियां भी हैं। शिक्षकों का प्रशिक्षण, कंटेंट डेवलपमेंट की लागत, और तकनीकी समस्याएं प्रमुख बाधाएं हैं। लेकिन दक्षिण कोरिया ने दिखाया है कि नीतिगत इच्छाशक्ति और उद्योग सहयोग से ये बाधाएं पार की जा सकती हैं।
भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर है। भारतीय IT उद्योग VR/AR कंटेंट डेवलपमेंट में अग्रणी है। बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे जैसे तकनीकी हब में एजुकेशनल VR/AR सॉल्यूशन विकसित करके न केवल भारतीय शिक्षा को बेहतर बनाया जा सकता है बल्कि इसे एक निर्यात उद्योग भी बनाया जा सकता है।
दक्षिण कोरिया की तकनीकी शिक्षा क्रांति दर्शाती है कि 21वीं सदी की शिक्षा केवल पुस्तकों और व्याख्यानों तक सीमित नहीं रह सकती। भारत को भी इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने होंगे ताकि हमारी भावी पीढ़ी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे रह सके।
0 टिप्पणियाँ