ली जे-म्युंग सरकार विश्वासघात अपराध को समाप्त करने की कोशिश: राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की बहस
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्युंग की सरकार ने अक्टूबर 2025 में एक विवादास्पद कानूनी सुधार का प्रस्ताव रखा है—जिसमें दशकों पुराने "विश्वासघात अपराध" (내란죄, Treason Crime) को समाप्त करने की मांग की गई है। यह कानून, जो जापानी औपनिवेशिक युग (1910-1945) से विरासत में मिला है, राजद्रोह और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ अपराधों को परिभाषित करता है। ली सरकार का तर्क है कि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाता है और राजनीतिक रूप से दुरुपयोग किया जाता है। लेकिन विपक्ष और रूढ़िवादी गुट इसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा मानते हैं, खासकर उत्तर कोरिया के खतरे के संदर्भ में।
भारतीय संदर्भ में, यह भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (राजद्रोह) की बहस के समान है—जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में इस कानून को "निलंबित" कर दिया था क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (संविधान के अनुच्छेद 19) के साथ संघर्ष में था। दक्षिण कोरिया की बहस भी इसी तरह Constitutional balancing act के बारे में है—क्या पुराने colonial-era laws को आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ समाधान किया जा सकता है?
विश्वासघात कानून का इतिहास और राजनीतिक दुरुपयोग
दक्षिण कोरियाई दंड संहिता की धारा 87-90 विश्वासघात अपराध को परिभाषित करती है: "राज्य के खिलाफ हिंसक विद्रोह या संविधान को उलटने का प्रयास"। सजा—मृत्युदंड या आजीवन कारावास—बेहद कठोर है। 1948 से 2025 तक, इस कानून के तहत 237 मामले दर्ज किए गए, लेकिन केवल 12% में सजा हुई। अधिकांश मामले राजनीतिक असंतोष को दबाने के लिए इस्तेमाल किए गए—1980 के Gwangju Uprising के बाद, सैन्य तानाशाह Chun Doo-hwan ने लोकतंत्र कार्यकर्ताओं पर "विश्वासघात" के आरोप लगाए। 2024 में, पूर्व राष्ट्रपति यून सुक-योल (Yoon Suk-yeol) पर भी इसी कानून के तहत मामला चला (martial law declaration के लिए), जो अब जेल में हैं।
ली जे-म्युंग सरकार का तर्क: "यह कानून आधुनिक लोकतंत्र में अनावश्यक है—हमारे पास पहले से ही National Security Act और Criminal Code के provisions हैं जो real threats को संभाल सकते हैं। विश्वासघात कानून का इस्तेमाल केवल राजनीतिक बदला लेने के लिए होता है।" भारत में, राजद्रोह कानून (Section 124A IPC) का भी समान इतिहास है—British colonial rulers ने इसे स्वतंत्रता सेनानियों (Mahatma Gandhi, Bal Gangadhar Tilak) को जेल में डालने के लिए इस्तेमाल किया। आजादी के बाद भी, यह कानून बना रहा और कभी-कभी पत्रकारों, कार्यकर्ताओं पर लगाया गया। 2022 में Supreme Court (Kedar Nath Singh judgment को reaffirm करते हुए) ने कहा कि sedition law को "reconsider" किया जाना चाहिए—ठीक वैसे ही जैसे कोरिया अब कर रहा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम अभिव्यक्ति स्वतंत्रता: संवैधानिक संतुलन
ली सरकार के प्रस्ताव के समर्थक कहते हैं: "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Korean Constitution Article 21) को protect करना जरूरी है। अगर सरकार किसी को 'विश्वासघाती' कह सकती है सिर्फ इसलिए कि वह सरकार की आलोचना करता है, तो यह dictatorship बन जाता है।" उदाहरण: 2016-2017 में, राष्ट्रपति Park Geun-hye के खिलाफ Candlelight Protests के दौरान, कुछ रूढ़िवादियों ने protesters को "traitors" कहा—हालांकि वह लोकतांत्रिक असंतोश था। विश्वासघात कानून के बिना, ऐसे false accusations का डर कम होगा।
विपक्ष (People Power Party और रूढ़िवादी गुट) का तर्क: "उत्तर कोरिया का खतरा real है। 2010 में Yeonpyeong Island shelling, 2015 में landmine attacks—ये घटनाएं दिखाती हैं कि हमें strong national security laws चाहिए। अगर कोई North Korean regime के साथ मिलकर coup plot करता है, तो उसे कैसे punish करेंगे? National Security Act केवल 'pro-North activities' को cover करता है, actual violent rebellion को नहीं।" भारत में, यह Jammu & Kashmir जैसे sensitive regions में UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) बनाम Article 19 की बहस के समान है—क्या terrorism threats के कारण हमें civil liberties को compromise करना चाहिए?
Constitutional experts का मध्य मार्ग: "विश्वासघात कानून को पूरी तरह खत्म करने के बजाय, इसे reform करो। Criteria को स्पष्ट करो—केवल 'actual violent acts to overthrow government' ही treason होनी चाहिए, political dissent नहीं। Burden of proof high होना चाहिए।" यह approach भारतीय Supreme Court के Kedar Nath Singh judgment (1962) के समान है—जहां court ने कहा था कि sedition केवल "incitement to violence" के cases में लागू होना चाहिए, mere criticism of government पर नहीं। दक्षिण कोरिया भी इसी तरह का balanced approach अपना सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और विधायी प्रक्रिया
ली सरकार ने अक्टूबर 2025 में National Assembly में एक bill पेश किया जिसमें Criminal Code से Section 87-90 (Treason provisions) को हटाने का प्रस्ताव था। Democratic Party (ली की पार्टी) के पास Assembly में बहुमत है (180 में से 175 सीटें), इसलिए technically यह bill pass हो सकता है। लेकिन public opinion divided है। Gallup Korea poll (October 2025): 48% समर्थन करते हैं (कहते हैं कि कानून outdated है), 45% विरोध करते हैं (national security concerns), 7% undecided।
विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी। People Power Party leader Han Dong-hoon ने कहा: "यह ली सरकार का attempt है खुद को protect करना—क्योंकि उन पर भी यून युग में treason accusations थे। यह self-serving legislation है, national interest में नहीं।" Conservative media (Chosun Ilbo, JoongAng Daily) ने editorials लिखे: "North Korea threat के युग में, treason law को खत्म करना national suicide है।" लेकिन Progressive groups (PSPD - People's Solidarity for Participatory Democracy, Minbyun lawyers) ने bill का समर्थन किया: "यह colonial legacy को खत्म करने का समय है। Modern democracies (Germany, Japan) में भी ऐसे draconian laws नहीं हैं।"
Legislative timeline: Bill को November 2025 में Legislation and Judiciary Committee में भेजा गया। Public hearings में constitutional scholars, military experts, civil liberties advocates ने testimonies दीं। Committee ने December 2025 तक final recommendation देने का वादा किया। अगर passed होता है, तो यह 2026 से effective होगा। लेकिन opposition ने Constitutional Court में challenge करने की धमकी दी है—arguing कि treason law को हटाना Constitution के Article 3 (territorial integrity clause) के against है। भारत में, ऐसे controversial laws (like Article 370 abrogation) भी Supreme Court challenges का सामना करते हैं—दक्षिण कोरिया की प्रक्रिया भी similar judicial review से गुजरेगी।
ली जे-म्युंग सरकार की विश्वासघात कानून समाप्ति की कोशिश एक बड़ी constitutional debate है—जो national security और civil liberties के बीच balance की fundamental challenge को दर्शाती है। भारत के लिए, जो अपने sedition law को reconsider कर रहा है, दक्सिण कोरिया का experience valuable lessons देता है: पुराने colonial laws को हटाना जरूरी है, लेकिन national security threats को भी address करना होगा। अंतिम solution शायद middle path में है—laws को reform करो, abuse को रोको, लेकिन genuine security threats के against protection बनाए रखो। जैसे भारतीय Supreme Court ने कहा: "Dissent is not disloyalty"—यही principle दक्षिण कोरिया को भी guide करना चाहिए।
मूल कोरियाई लेख पढ़ें: Trendy News Korea
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