राष्ट्रपति ली जे-म्युंग का संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऐतिहासिक भाषण: दक्षिण कोरिया के वैश्विक नेतृत्व और शांति राजनीति की नई दिशा
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित 78वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्युंग का भाषण न केवल दक्षिण कोरियाई विदेश नीति के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, बल्कि वैश्विक राजनीति में कोरियाई प्रायद्वीप की भूमिका को पुनर्परिभाषित करने का एक ऐतिहासिक अवसर भी है। 27 सितंबर 2025 को दिया गया यह भाषण उस समय आया है जब दुनिया कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है - जलवायु परिवर्तन से लेकर साइबर सुरक्षा तक, और आर्थिक असमानता से लेकर तकनीकी शासन के मुद्दों तक। राष्ट्रपति ली के भाषण में दक्षिण कोरिया की "मध्यम शक्ति राजनीति" (Middle Power Diplomacy) का नया दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाई दिया, जो देश को वैश्विक मुद्दों में एक सेतु की भूमिका निभाने के लिए तैयार करता है।
राष्ट्रपति ली जे-म्युंग का यह भाषण उनकी राष्ट्रपति पद की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। जिस व्यक्ति ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत स्थानीय राजनीति से की थी और बाद में ग्योंगी प्रांत के गवर्नर के रूप में राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की, वह अब विश्व मंच पर दक्षिण कोरिया की आवाज़ बन गया है। उनके भाषण में सामाजिक न्याय, तकनीकी नवाचार, और पर्यावरणीय स्थिरता के मुद्दों का जो समावेश दिखा, वह उनकी व्यापक राजनीतिक दृष्टि को दर्शाता है जो घरेलू नीतियों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तक फैली हुई है।
इस भाषण का अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसे समय में जब वैश्विक व्यवस्था में महाशक्तियों के बीच तनाव बढ़ रहा है और बहुपक्षीयता (Multilateralism) की प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं, दक्षिण कोरिया जैसे मध्यम शक्ति वाले देशों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। राष्ट्रपति ली के भाषण में इसी स्थिति का सामना करने के लिए दक्षिण कोरिया की तैयारी और रणनीति स्पष्ट रूप से दिखाई दी। उन्होंने यह संदेश दिया कि दक्षिण कोरिया केवल अपने क्षेत्रीय हितों तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के समाधान में एक सक्रिय और रचनात्मक भागीदार बनना चाहता है।
कोरियाई प्रायद्वीप की शांति और सुरक्षा
राष्ट्रपति ली जे-म्युंग के भाषण में सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील हिस्सा कोरियाई प्रायद्वीप की शांति और सुरक्षा के मुद्दे पर केंद्रित था। उन्होंने उत्तर कोरिया के साथ संबंधों के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने "व्यावहारिक शांति राजनीति" (Pragmatic Peace Diplomacy) का नाम दिया। इस दृष्टिकोण का मूल सिद्धांत यह है कि कोरियाई प्रायद्वीप की शांति केवल सैन्य निरोध या आर्थिक प्रतिबंधों के माध्यम से हासिल नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए एक व्यापक और बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है जो राजनीतिक संवाद, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को समान रूप से महत्व देती है।
राष्ट्रपति ली ने अपने भाषण में स्पष्ट रूप से कहा कि दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया के साथ बिना शर्त संवाद के लिए तैयार है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि यह संवाद पारस्परिक सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय कानून के ढांचे के भीतर होना चाहिए। उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि कोरियाई प्रायद्वीप का विभाजन न केवल दोनों कोरिया के लिए एक त्रासदी है, बल्कि यह पूरे पूर्वोत्तर एशिया की शांति और स्थिरता के लिए भी एक बाधा है। इसलिए इस समस्या का समाधान न केवल द्विपक्षीय बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए।
उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर राष्ट्रपति ली ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। एक तरफ उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि परमाणु हथियारों का विकास और परीक्षण अस्वीकार्य है और यह क्षेत्रीय तथा वैश्विक शांति के लिए खतरा है। दूसरी तरफ उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर कोरिया की सुरक्षा चिंताओं को समझना जरूरी है और इन चिंताओं के समाधान के लिए रचनात्मक तरीके खोजने होंगे। उन्होंने "सुरक्षा दुविधा" (Security Dilemma) की अवधारणा का उल्लेख करते हुए कहा कि एक पक्ष की सुरक्षा बढ़ाने के उपाय अक्सर दूसरे पक्ष की असुरक्षा बढ़ा देते हैं, और इस चक्र को तोड़ने के लिए एक नई सोच की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति ली ने कोरियाई प्रायद्वीप के लिए एक "शांति अर्थव्यवस्था" (Peace Economy) की अवधारणा भी प्रस्तुत की। इस अवधारणा के अनुसार, उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच आर्थिक सहयोग केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह शांति निर्माण का एक महत्वपूर्ण साधन भी है। उन्होंने सुझाव दिया कि दोनों कोरिया मिलकर अवसंरचना विकास, पर्यावरण संरक्षण, और तकनीकी नवाचार के क्षेत्रों में सहयोग कर सकते हैं। इस तरह के सहयोग से न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि दोनों पक्षों के बीच विश्वास भी बढ़ेगा और राजनीतिक संवाद के लिए अनुकूल माहौल तैयार होगा।
वैश्विक जलवायु नेतृत्व और हरित परिवर्तन
राष्ट्रपति ली जे-म्युंग के भाषण का दूसरा प्रमुख फोकस जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियों पर था। उन्होंने दक्षिण कोरिया को "ग्रीन न्यू डील" के वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। यह दृष्टिकोण केवल पर्यावरणीय लक्ष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय, और तकनीकी नवाचार को भी समाहित करता है। राष्ट्रपति ली का कहना था कि जलवायु परिवर्तन से निपटना केवल एक पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी आर्थिक अवसर भी है।
दक्षिण कोरिया की ग्रीन न्यू डील रणनीति के तहत राष्ट्रपति ली ने 2030 तक देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 40% की कमी का लक्ष्य दोहराया, जो पेरिस समझौते के तहत देश की प्रतिबद्धता से कहीं अधिक महत्वाकांक्षी है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि दक्षिण कोरिया 2045 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करने का लक्ष्य रखता है, जो मूल लक्ष्य से पांच साल पहले है। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उन्होंने एक व्यापक रोडमैप प्रस्तुत किया जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक परिवहन, हरित हाइड्रोजन, और स्मार्ट ग्रिड तकनीक में भारी निवेश शामिल है।
राष्ट्रपति ली ने विशेष रूप से हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में दक्षिण कोरिया की नेतृत्व की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि दक्षिण कोरिया दुनिया का पहला "हाइड्रोजन सोसाइटी" बनने का लक्ष्य रखता है, जहां हाइड्रोजन न केवल ऊर्जा उत्पादन के लिए बल्कि परिवहन, औद्योगिक प्रक्रियाओं, और घरेलू उपयोग के लिए भी एक प्राथमिक ईंधन होगा। इस दिशा में दक्षिण कोरिया पहले से ही महत्वपूर्ण प्रगति कर चुका है - देश में दुनिया की सबसे बड़ी हाइड्रोजन फ्यूल सेल पावर प्लांट्स में से कुछ हैं, और हुंडई जैसी कंपनियों ने हाइड्रोजन कारों के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाई है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के संदर्भ में राष्ट्रपति ली ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखा। उन्होंने "ग्लोबल ग्रीन न्यू डील पार्टनरशिप" का सुझाव दिया, जिसके तहत विकसित और विकासशील देशों के बीच हरित तकनीक, वित्तीय संसाधन, और क्षमता निर्माण के क्षेत्र में व्यापक सहयोग हो सके। इस पार्टनरशिप का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की प्रक्रिया में कोई देश पीछे न छूटे और सभी देशों के पास हरित विकास के अवसर उपलब्ध हों। दक्षिण कोरिया ने इस पार्टनरशिप के तहत अगले पांच वर्षों में विकासशील देशों को 10 बिलियन डॉलर की हरित वित्तीय सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई।
तकनीकी नवाचार और डिजिटल शासन
राष्ट्रपति ली के भाषण का तीसरा महत्वपूर्ण स्तंभ तकनीकी नवाचार और डिजिटल शासन के मुद्दों पर केंद्रित था। उन्होंने दक्षिण कोरिया को "डिजिटल न्यू डील" का वैश्विक अग्रणी बनाने का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो न केवल तकनीकी उन्नति पर केंद्रित है बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि डिजिटल क्रांति का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे। राष्ट्रपति ली का कहना था कि 21वीं सदी में किसी भी देश की वैश्विक स्थिति उसकी तकनीकी क्षमता और डिजिटल बुनियादी ढांचे से निर्धारित होगी, और इस संदर्भ में दक्षिण कोरिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में दक्षिण कोरिया की रणनीति पर बोलते हुए राष्ट्रपति ली ने "ह्यूमन-सेंटेड AI" की अवधारणा प्रस्तुत की। इस अवधारणा के अनुसार, AI का विकास और उपयोग इस तरह किया जाना चाहिए कि यह मानवीय गरिमा और मूल्यों को बढ़ाए, न कि उन्हें घटाए। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया AI के विकास में न केवल तकनीकी उत्कृष्टता पर ध्यान देगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि AI सिस्टम नैतिक, पारदर्शी, और जवाबदेह हों। इस दिशा में दक्षिण कोरिया ने "AI एथिक्स चार्टर" बनाने का प्रस्ताव रखा है जो अन्य देशों के लिए एक मॉडल बन सकता है।
साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर राष्ट्रपति ली ने एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि साइबर स्पेस अब "पांचवा डोमेन" (Fifth Domain) बन गया है, जो थल, जल, वायु, और अंतरिक्ष के बाद संघर्ष और सहयोग का एक नया क्षेत्र है। इस संदर्भ में राष्ट्रपति ली ने "साइबर शांति पहल" (Cyber Peace Initiative) का प्रस्ताव रखा, जिसका उद्देश्य साइबर स्पेस में अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानदंडों का विकास करना है। उन्होंने सुझाव दिया कि जिस तरह से भौतिक युद्ध के लिए जेनेवा कन्वेंशन है, उसी तरह साइबर युद्ध के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय नियम और सीमाएं निर्धारित होनी चाहिए।
डिजिटल विभाजन (Digital Divide) के मुद्दे पर राष्ट्रपति ली ने विशेष चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि तकनीकी प्रगति का फायदा केवल विकसित देशों या समाज के संपन्न वर्गों तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने "डिजिटल इन्क्लूजन ग्लोबल फंड" का प्रस्ताव रखा, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों में डिजिटल बुनियादी ढांचे का विकास करना और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना है। दक्षिण कोरिया ने इस फंड में अगले तीन वर्षों में 5 बिलियन डॉलर का योगदान देने की प्रतिबद्धता जताई।
मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य
राष्ट्रपति ली जे-म्युंग के भाषण में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति दक्षिण कोरिया की प्रतिबद्धता का विशेष उल्लेख था। उन्होंने दक्षिण कोरिया के लोकतांत्रिक संक्रमण के अनुभव को अन्य देशों के साथ साझा करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि लोकतंत्र का कोई एक निर्धारित मॉडल नहीं है और हर देश को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुकूल अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित करनी चाहिए। राष्ट्रपति ली का कहना था कि दक्षिण कोरिया का लोकतांत्रिक अनुभव यह दिखाता है कि आर्थिक विकास और लोकतांत्रिक मूल्य एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि वे एक-दूसरे को मजबूत बनाते हैं।
महिला अधिकारों के मुद्दे पर राष्ट्रपति ली ने दक्षिण कोरिया की प्रगति और चुनौतियों दोनों को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया में महिलाओं की शिक्षा और व्यावसायिक भागीदारी में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी वेतन अंतर, कार्यक्षेत्र में भेदभाव, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मुद्दों पर काम करना बाकी है। उन्होंने "जेंडर इक्वैलिटी 2030" कार्यक्रम की घोषणा की, जिसका उद्देश्य 2030 तक लैंगिक समानता के सभी प्रमुख सूचकांकों में दक्षिण कोरिया को विश्व के टॉप 10 देशों में शामिल करना है।
युवा अधिकारों और भविष्य की पीढ़ियों के हितों पर बोलते हुए राष्ट्रपति ली ने एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि आज के राजनीतिक और आर्थिक निर्णय भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित करते हैं, लेकिन उन पीढ़ियों का इन निर्णयों में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इस "इंटरजेनेरेशनल जस्टिस" की समस्या को हल करने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि नीति निर्माण की प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए। दक्षिण कोरिया इस दिशा में "यूथ क्लाइमेट काउंसिल" और "फ्यूचर जेनेरेशन कमिश्नर" जैसी संस्थाओं की स्थापना कर चुका है।
राष्ट्रपति ली जे-म्युंग का यह संयुक्त राष्ट्र भाषण न केवल दक्षिण कोरिया की विदेश नीति की दिशा को दर्शाता है, बल्कि यह वैश्विक राजनीति में मध्यम शक्ति वाले देशों की बढ़ती भूमिका का भी प्रतिनिधित्व करता है। इस भाषण के माध्यम से दक्षिण कोरिया ने यह संदेश दिया है कि वह केवल अपने क्षेत्रीय हितों तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के समाधान में एक सक्रिय और जिम्मेदार भागीदार बनना चाहता है। जलवायु परिवर्तन से लेकर तकनीकी शासन तक, और शांति निर्माण से लेकर मानवाधिकारों तक, इस भाषण में उठाए गए मुद्दे न केवल दक्षिण कोरिया की प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं, बल्कि वे उन चुनौतियों को भी रेखांकित करते हैं जिनका सामना पूरी मानवता को करना है।
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